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Wednesday, 28 October 2020

क्या बच्चों को स्कूल से ही कंप्यूटर कोडिंग सीखने की ज़रूरत है

 

कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर स्कूली बच्चों के लिए कोडिंग कोर्स का विज्ञापन दिख रहा था. व्हाइट हैट नाम की कंपनी के इन विज्ञापनों में 6 से 14 साल के बच्चों के लिए कोडिंग के फ़ायदों को लेकर कुछ दावे किए गए हैं. इसमें यह भी दावा किया गया है कि सरकार ने छठी क्लास और उससे ऊपर के बच्चों के लिए कोडिंग सीखना अनिवार्य कर दिया है.

ये विज्ञापन मां-बाप और अभिभावकों में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहा है इसलिए महाराष्ट्र की शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड़ से इसे लेकर सवाल पूछे गए हैं. उन्होंने भी इस विज्ञापन का संज्ञान लिया है और लोगों से अपील की है कि वे इस तरह के दावों में ना फंसे.

इसे लेकर विवाद पैदा होने के बाद 'कोडिंग को अनिवार्य बताने वाले' विज्ञापन पर रोक लग गई है लेकिन इसे लेकर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं. मसलन कोडिंग क्या है? क्या सिर्फ़ छह साल के बच्चों को कोडिंग सिखाना अनुचित है? क्या इससे इतनी कम उम्र के बच्चों पर कोडिंग जैसे जटिल विषय को सीखने का अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ेगा? ऐसे तमाम सवाल पूछे जा रहे हैं.

कोडिंग क्या है?

जब हम कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं तो सिर्फ़ उसके बाहरी प्रोसेस से ही अवगत होते हैं लेकिन इस प्रोसेस के पीछे एक सिस्टम काम कर रहा होता है जिसे 'कोडिंग' कहते हैं. हम इसे बाहरी तौर पर नहीं देख सकते हैं.

कोडिंग को हम प्रोग्रामिंग भी कह सकते हैं या इसे सरल भाषा में कंप्यूटर की भाषा भी कह सकते हैं. जो कुछ भी हम कंप्यूटर पर करते हैं वो सब कोडिंग के माध्यम से ही होता है. कोडिंग का इस्तेमाल कर कोई वेबसाइट, गेम या फिर ऐप तैयार कर सकता है. कोडिंग का इस्तेमाल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स में भी किया जा सकता है.

कोडिंग की कई भाषाएँ होती है जैसे C, C++, जावा, एचटीएमएल, पाइथॉन वगैरह. इनमें से कुछ भाषाओं का इस्तेमाल वेबसाइट और एंड्रॉयड ऐप डिज़ाइन करने में किया जाता है. अगर हमारे पास इन भाषाओं की जानकारी है तो हम एक ऐप या गेम को डिजाइन करने की प्रक्रिया को समझ सकते हैं.

कंपनी का दावा और अभिभावकों में पैदा हुआ भ्रम

कंपनी ने दावा किया कि बच्चों को अगर कोडिंग कम उम्र में सिखाई जाए तो उनके मस्तिष्क का विकास तेज़ी से होगा. ये एकाग्रता को भी बढ़ाता है. कोडिंग भविष्य में सुनहरे मौके मुहैया कराने की कुंजी है. हम अपने बच्चों को इस कोर्स की मदद से सफल उद्यमी और व्यापारी बना सकते हैं.

विज्ञापन में यह भी दावा किया गया है कि भविष्य में 60 से 80 फ़ीसद मौजूदा नौकरियाँ नहीं रहने वाली है इसलिए बच्चों को अभी कोडिंग सिखा कर उन्हें तेज़ बनाना चाहिए. इसके अलावा यह दावा भी किया गया कि भारत सरकार नए अपनी नई शिक्षा नीति में छठी क्लास और उससे ऊपर के बच्चों के लिए कोडिंग सीखना अनिवार्य कर दिया है.

वीरेंद्र सहवाग, शिखर धवन, माधुरी दीक्षित और सोनू सूद जैसे कई सेलेब्रिटी इस विज्ञापन में अपने बच्चों के साथ दिखाई देते हैं लेकिन इस विज्ञापन को लेकर आरोप लगाया गया है कि इसमें आपत्तिजनक चीजें दिखाई गई हैं. कंपनी पर लोगों को दिग्भ्रमित करने का भी आरोप लगाया गया है.

लेकिन इससे लोगों में भ्रम की स्थिति बनी है. इतनी कम उम्र में कोडिंग की पढ़ाई कितनी उचित है इसे लेकर बहस शुरू हो गई है. लोग सवाल खड़ा कर रहे हैं कि कैसे इसे अनिवार्य कर दिया गया. मामले को बढ़ता देख महाराष्ट्र की शिक्षा मंत्री ने दखल दिया.

शिक्षा विभाग ने साफ़ किया- कोडिंग अनिवार्य नहीं

कोरोना को लेकर छह महीनों से स्कूल बंद पड़े हुए थे. इस बीच कई स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाएँ शुरू कीं. अभिभावकों को इस बात को लेकर भ्रम हुआ कि कहीं कोडिंग 'ऑनलाइन एजुकेशन' का हिस्सा तो नहीं.

इस बीच विज्ञापन की वजह से और भ्रम की स्थिति बन गई. एक ट्विटर यूज़र रीमा कथाले ट्वीट कर पूछती हैं, "फेसबुक पर हर रोज विज्ञापन दिख रहा है. आज वो एक और कदम आगे बढ़ गए हैं. वे दावा कर रहे हैं कि कोडिंग छठी क्लास और उससे ऊपर के क्लास के बच्चों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है? ये कब हुआ? किसने इसे अनिवार्य कर दिया? या तो मैं इस बारे में कुछ नहीं जानती या फिर ये विज्ञापन ग़लत है. वे माता-पिता को क्यों दिग्भ्रमित कर रहे हैं?"

सूचना और तकनीकी मंत्री सतेज पाटिल ने रीमा कथाले की इस पोस्ट पर ध्यान दिया और उन्होंने इसे रीट्वीट कर शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड़ को टैग कर स्पष्टीकरण का अनुरोध किया.

वर्षा गायकवाड़ ने साफ़ किया कि, "नई शिक्षा नीति के मुताबिक राष्ट्रीय और राजकीय स्तर पर अभी पाठ्यक्रम तैयार नहीं हुआ है. इसलिए राज्य सरकार या महाराष्ट्र स्टेट काउंसिल फॉर एजुकेशनल रीसर्च एंड ट्रेनिंग (एसीईआरटी) ने अब तक कोई ऐसा फ़ैसला नहीं लिया है."

उन्होंने छात्रों और उनके माता-पिता से ऐसे विज्ञापनों के झांसे में नहीं आने की भी अपील की.

नई शिक्षा नीति में सिर्फ़ ज़िक्र भर

इस साल तैयार हुई नई शिक्षा नीति में सिर्फ़ इस बात का ज़िक्र है कि कोडिंग स्कूल स्तर पर पढ़ाया जा सकता है. स्कूली शिक्षा विभाग की सचिव अनीता करवाल ने कहा है कि इस बात का ख्याल रखते हुए कि एक कौशल के तौर पर 21वीं सदी की यह जरूरत है, छठी क्लास से बच्चों को कोडिंग पढ़ाया जा सकता है.

लेकिन अभिभावकों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि शिक्षा नीति में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि कोडिंग पढ़ाना अनिवार्य है.

'यह सिर्फ़ मार्केटिंग है'

यूट्यूब और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर कोडिंग से जुड़े इस विज्ञापन को खूब दिखाया गया. इसलिए इसने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. प्राइवेट ट्यूशन के इस तरह की मार्केटिंग पर भी सवाल खड़े किए गए.

बाल मनोचिकित्सक डॉक्टर भीषण शुक्ल कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह चतुर मार्केटिंग विशेषज्ञों के द्वारा आकर्षक बातों की मदद से फालतू चीज़ें बेचने और उसमें लोगों के फंसने का मामला है."

पुणे में क्रिएटिव पेरेंट्स एसोसिएशन चलाने वाले चेतन एरांडे का कहना है, "हमारे समाज में एक आम अवधारणा है कि बच्चे अगर कम उम्र में कोडिंग सीखना शुरू कर देंगे तो आगे चल कर वो बड़े प्रोग्रामर बनेंगे और फिर वो बहुत पैसे कमाएंगे. कोडिंग क्लास चलाने वालों से जानबूझ कर इस धारणा को और बढ़ावा दिया है."

बीबीसी मराठी ने व्हाइट हैट जूनियर कंपनी से इस मामले में उनका पक्ष जानने के लिए भी संपर्क किया.

व्हाइट हैट कंपनी के मीडिया प्रतिनिधि सुरेश थापा ने बातचीत में कहा, "हमने वो विज्ञापन वापस ले लिया है इसलिए इस बारे में बात करना सही नहीं होगा."

लेकिन सुरेश थापा कहते हैं कि आने वाले वक्त में कोडिंग बहुत अहम होने जा रहा है.

वो कहते हैं, "हालांकि अभी कोडिंग एक अनिवार्य विषय नहीं है. लेकिन यह आने वाले वक्त में निश्चित तौर पर पाठ्यक्रम में शामिल होगा. दुनिया भर में बच्चों को कम उम्र में कोडिंग सिखाई जा रही है. हम भविष्य को देखते हुए लोगों में इसे लेकर जागरूकता फैला रहे है."

कम उम्र के बच्चों पर 'कोडिंग' का दबाव

भूषण शुक्ल कहते हैं कि, "जिन बच्चों को अपनी ख़ुद की साफ़-सफ़ाई के लिए अपनी मां की मदद की ज़रूरत पड़ती है, वो कोडिंग कैसे समझ पाएंगे? यह संभव है कि इससे उनके ऊपर नकारात्मक ही असर पड़े. कंपनी का दावा है कि कोडिंग मस्तिष्क के विकास को बढ़ाता है. लेकिन कोडिंग तो हाल ही में ईजाद हुआ है. मुझे नहीं लगता कि इसका मानव के विकास या फिर बौद्धिक विकास में कोई भूमिका है."

डॉक्टर समीर दलवई भी इस बात से सहमत नज़र आते हैं. वो मुंबई में न्यू हॉरिजन्स चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर में बाल रोग विशेषज्ञ हैं.

वो कहते हैं, "बच्चे पहले से ही कई तरह की तकनीक की मार से घिरे हुए हैं. कोडिंग कोर्स से यह और बढ़ेगा ही. कोई निवेशक आपके दरवाज़े पर कोडिंग सीखाने के बाद सात साल के बच्चे के तैयार किए गए ऐप को खरीदने नहीं आ रहा है. कोडिंग सीखने के लिए दबाव बनाने के बजाए उन्हें खेल-कूद में हिस्सा लेने दें."

इस कोर्स की फ़ीस को लेकर भी सवाल उठे हैं.

चेतन एरांडे कहते हैं, "अगर कुछ हज़ार रुपये फीस देने के बाद बच्चा क्लास करने से मना करता है तो मां-बाप को दुखी नहीं होना चाहिए. उन्हें कुछ हज़ार रुपयों के लिए बच्चों पर दबाव नहीं बनाना चाहिए. अगर बच्चों को समझने में दिक्कत हो रही है तो उन्हें आसानी से कोर्स छोड़ने देना चाहिए."

हालाँकि, व्हाइट हैट के सुरेश थापा क्लास करने के लिए बच्चों पर दबाव डालने की संभावना से इंकार करते हैं.

वो कहते हैं, "कोडिंग क्लास बच्चों को प्रेरित करता है. कोर्स के दौरान बच्चे कई तरह की गतिविधियाँ करते हैं. उनका ध्यान सिर्फ क्लास में ही होता है. इससे एकाग्रता बढ़ाने में मदद मिलती है. क्लास एक घंटे से ज्यादा की नहीं होती है. इसलिए बच्चे आनंदपूर्वक सीख सकते हैं."

आगे वो कहते हैं,"कोडिंग सीखाने का तरीका जो बच्चे पहली क्लास में है और जो बच्चे दसवीं क्लास में हैं उन दोनों के लिए अलग-अलग होता है. हर किसी को उसकी उम्र के हिसाब से सिखाया जाता है. हम किसी बच्चे पर अपनी क्लास में दबाव नहीं डालते हैं. "

बच्चों को कोडिंग सीखना चाहिए या नहीं?

अब सवाल उठता है कि क्या कम उम्र के बच्चों को कोडिंग सीखना चाहिए?

चेतन इसका जवाब देते हुए कहते हैं, "उन्हें ज़रूर सीखना चाहिए लेकिन जिस तरह से कोडिंग सिखाया जाता वो अलग होना चाहिए. प्रोग्रामिंग लैंग्वेज की तकनीक तेज़ी से बदल रही है. अगर बच्चे कोई चीज़ कम उम्र में सीखते हैं तो कोई ज़रूरी नहीं कि भविष्य में किसी काम आए. लेकिन बच्चों के लिए कोडिंग सीखना सिर्फ़ प्रोग्रामिंग की भाषा सीखने से ज्यादा महत्वपूर्ण है. हमें यह भी जानने की जरूरत है कि हमारे बच्चों की वाकई इसमें रुचि है कि नहीं."

व्हाइट हैट का कहना है कि, "हम ये नहीं कह रहे हैं कि लोगों को हमारा क्लास ज्वाइन ही करना चाहिए. जिन्हें इसमें दिलचस्पी है वो इसे अभी सीख सकते हैं."

बच्चों की दिलचस्पी कैसे पता करें?

अभिभावक अपने बच्चों के करियर को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते हैं. इसके लिए वो हज़ारों या लाखों रुपये तक खर्च करने को तैयार रहते हैं. लेकिन बाद में बता चलता है कि उनके बच्चे का किसी दूसरे क्षेत्र के प्रति रुझान है.

पीएनएच टेक्नॉलॉजी के निदेशक प्रदीप नरायणकार एक रास्ता बताते हैं कि कैसे इससे बचा जा सकता है. उनकी कंपनी सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और रोबोटिक्स ट्रेनिंग के क्षेत्र में काम करती है.

वो कहते हैं, "लोग अपने बच्चों को लेकर आते हैं जो टीवी रिमोट या फिर बिगड़ गए उपकरणों को हैंडल करने में दिलचस्पी लेते हैं. लेकिन वाकई में उन बच्चों को कोडिंग में दिलचस्पी नहीं होती है. कुछ बच्चे ये काम जिज्ञासावश भी कर सकते हैं."

वो आगे कहते हैं, "अभिभावकों को सबसे पहले बच्चों के अंदर किसी खास विषय में रुचि है कि नहीं ये देखना चाहिए. अमरीका की संस्था एमआईटी बुनियादी कोर्स करवाती है. गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, इडेक्स और कोर्सेरा जैसी कंपनियाँ भी मुफ्त में ये कोर्स करवाती है. पहले बच्चों से ये कोर्स करवाने चाहिए और देखना चाहिए कि उन्हें कितनी कामयाबी मिलती है. हम विशेषज्ञों से भी इस बाबत राय ले सकते हैं बजाए कि विज्ञापन देख कर महंगे कोर्स के झांसे में फंसने के."

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